ख्यालों के महल
न इठला रौशनी की गली
मैं अपना चाँद छोड़ आया हूँ
आबाद तेरे शहर को करने
मैं अपना गांव छोड़ आया हूँ
न गुमां चंद रोज की धमक पर
मैं अखंड दीया छोड़ आया हूँ
तू चले जाने को धौंस समझता है
मैं बहती नदी छोड़ आया हूँ
न बना ख्यालों के महल
मैं बड़ी 'तिवारियाँ' छोड़ आया हूँ
तेरी ये बालकनियां खरीद न पाएंगी !
मैं पूरे पहाड़ छोड़ आया हूँ
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