मौन आभास
उन आख़री शब्दों में भी ढूँढता स्नेह हूँ
आख़री कुछ पंक्तियों में समग्र का शेष हूँ
बह चला हो दूर जो ताँकता अब उसको हूँ
मैं नदी में टूटता घुलता कोई अवसाद हूँ
अग्निपथ पर रश्मिरथ सा चलता हुआ सवार हूँ
हर कलह की देह पर असीम शान्ती का संवाद हूँ
उड चला जो अंबुधि में वो लौटता एक विहग हूँ
मैं खुद की तलाश में खुद को ढूँढता एक मार्ग हूँ
अनकही कहानी के उपसर्ग का एक भाव हूँ
कविता के मूल का गूढ़ सा अहसास हूँ
कह दिया आवेश में उस भावना का मूर्त हूँ
मै मौन रहकर मौन के विश्वास का आभास हूँ
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