बाँट लेना

न जाने क्यों अच्छा लगता है
तुझे अपनी बात बता जाना
तु न भी चाहे पर सब पूछ जाना
कहीं कुछ भारी करके हल्का तो नही हूँ मैं 
रूठा तु हो सकता है तुझसे रुठा नही हूँ मैं 

दायरे आशाओं के सीमित से हैं
शुकून सा है तेरे से कुछ बाँट जाना 
तुझे रिश्ते की घेर बाढ़ में नही बाँधा 
कही कुछ जिद में खो तो नही रहा हूँ मैं 
रूठा तु हो सकता है तुझसे रुठा नही हूँ मैं

सब कुछ तो अलग सा ही है 
फिर भी अच्छा है कभी मिल जाना
कभी यूँही तेरा मन करे तो चले आना  
कहीं स्नेह के कुछ पलों खो तो नही रहा हूँ मैं 
रूठा तु हो सकता है तुझसे रुठा नही हूँ मैं

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