बस्तियां रही हैं न हस्तियां
मेल मन का रहा जो मिटेगा यहीं
छोड़कर बादशाहत जाएगी कभी
यूँ तो साध ही रहा है साधन सही
न तो बस्तियां रही हैं न हस्तियां कहीं
दूरियां जो रही वो घटेंगी यहीं
छोड़कर मन को आहत गया न कभी
यूँ तो बस ही रहा है न चाहत कहीं
न तो बस्तियां रही हैं न हस्तियां कहीं
मौन जो भी रहा बोलेगा वो यहीं
आह मन में लिए कब गया है कोई
यूँ तो पाया सदा है खोया नहीं
न तो बस्तियां रही हैं न हस्तियां कहीं
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