एक बानगी सी कोई
मेरे नीड पर चहचहाती रही
खिलती कलियों की एक बानगी सी कोई
रेतपर जो कहीं भी उकरता रहा
बोलती सोचती एक मूरत कोई
मेरे ख्वाब में कुछ भी रोशन रहा
जगती किरणों की एक बानगी सी कोई
चौक पर जो कभी भी अँधेरा रहा
टिमटिमाती कोई जुगनुओं सी लगी
मेरी राह में कुछ भी पाता लगा
मिलते लक्ष्यों की एक बानगी सी कोई
राह में जो कभी भी भटकता रहा
साथ देती कोई अंगुलियों सी लगी
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