जाना फिर नहीं
मैं कहीं लांघू कभी जो स्नेह की सीमाएं रही
तटबंध बनकर तू सदा आवेश ठहरना वहां ।।
टूटती हर दिवार पर कुछ लेप भर देना कोई
दो शब्द गढ़कर स्नेह के तुम रोक लेना घर यही।।
शोर हो किस बात का तो सुन के चुप रहना नहीं
कह भी देना बात सब चुपचाप फिर जाना नहीं ।।
वक़्त सदियों सा लगा है लौटकर आना वहीं
थाम लेना हाथ फिर अब दूर जाना फिर नहीं।।
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