आज आवाज़ आयी

 


उड़ते मन ने कहा आसमा लाँघ लूँ

आज आवाज़ आयी वो छनकर यहीं 

मन ने जिसको जहाँ में ढूंढा दरबदर 

अंकुरित वो हुआ बीज गहरा पड़ा 


जो छुड़ा ले गयी थी कभी प्रीत को 

आज मन को वोही मेहरबां मिल गया  

ख़ाली शब्दों ने जिसको तराशा कभी 

आज पाती कोई प्रेम की लिख गया 


तेरे सम्मान से कुछ भी बढ़कर नहीं 

जानता हूँ सभी सीमाएं मेरी 

मौन सोचे कभी आके मिल जा गले 

मौन का  मौन से हो वो संगम कभी 

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