तुझे सांसों में रखता हूँ
जहा शंका के बादल हों तु फिर प्रश्न कर लेना
जो तेरे मन की न हो तो तु फिर नाराज़ हो लेना
हजारों बार लिखा है हजारों बार कहता हूँ
तु पावन मन हिमालय है तुझे सांसों में रखता हूँ
न खेतो में, पहाड़ो में, न अब नदियों में बहता हूँ
मैं अपना घर समझकर तुझको अपने दिल में रखता हूँ
मनो ने खिंच ली डोरी कि अब उड़ने से डरता हूँ
तु घर कि नीव है मेरी तुझे सांसों में रखता हूँ
न बातों में, ख्यालों में, न मन में राग रख लेना
अजानों ने दिया तुझको, तु सब कुछ छीन कर लेना
मनों में बज चुकी घंटी कि अब मंदिर से डरता हूँ
तु मन कि चाह है मेरी तुझे सांसों में रखता हूँ
न पाने में न खोने में कुछ बर्बाद होने में
तु मन की आस है मेरी मेरी तुझे सांसों में रखता हूँ
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