वो तो गुमशुम रहा
हमने बरसों सजाया जिसे ख़्याब में
वो मुसलसल कहीं मन में बसता गया
मंजिलो का जहाँ कुछ निशां ही नहीं
रास्तों पर कोई रहनुमा मिल गया
एक आवाज़ थी जो कि आती रही
मन था टुकड़ों में फिर भी सजाती रही
खोने पाने का कोई इरादा न था
जितना मिलना था हिस्से का सब मिल गया
जो लगा एकतरफा सदा साथ में
वो समान्तर कहीं दूर चलता रहा
दूरियों में रहा वो तो गुमशुम रहा
मन के कोनों में संगीत बजता रहा
हमने बरसों सजाया जिसे ख़्याब में
वो मुसलसल कहीं मन में बसता गया
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