तु ही था हर बात में
तु ही था हर बात में और ख्वाब में भी तु ही है
शब्द भी लिखे थे वो तुझको बंदगी भी तुझसे है
भेदना पहरों को तब भी यूँ कोई मुश्किल न था
आखोर की हर कर्मण्यता का विराम भी तो तुझसे था।
तु ही था बदली छबि में हर सूक्ष्मता में तु ही था
भीड़ में ढूंढा था तुझको हर नजर भी तुझसे है
अनुहार की अवलोकना का अँदाना किस बस में था
आबरू की हर सीमांतता का भेद भी तो तुझसे था।।
तु ही था मन में हमेशा हर सार में भी तु ही था
आंसू बहे जो आज हैं वो विश्वास भी तो तुझसे है
वैदेह की हर वेदना का तोरण कहाँ किस बस में था
कगार की एकरुखता का हर सबब भी तुझसे था.।।
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