जताता नहीं

 मैं जगाने लगा उसको जिद में मेरी 

हर पहर जो बंधा एक सीमा मै था 

बांटते बांटते रुक ही जाता है वो 

मानता है जरा पर जताता नहीं 


मै कहने लगा अति की सीमा मेरी 

थोड़ा चुप सा रहा मुस्कुराता लगा 

लिखते लिखते जरा रुक ही जाता है वो 

चाहता है जरा पर जताता नहीं 


मैं सताने लगा और शरारतें मेरी 

थोड़ा हंस सा गया और सहता लगा 

कहते कहते जरा रुक ही जाता है वो 

सुनता है जरा पर जताता नहीं 


जानता हूँ सभी सीमाएं तेरी 

तोड़े बंधन नहीं जाते हैं कभी 

बात की बात हो तो गले मिल भी लें 

बढ़ता है जरा पर जताता नहीं 


ऊँचे बढ़ते रहें हो वो मंजिल तेरी 

राहें हों  संग संग चल भी तो अभी 

हाथ मै हाथ दे दो कदम चला है वो 

भरोशा भी है  पर जताता नहीं 

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