मन रे !
ये जो मिलन हुआ मन रे !
मन बीच बसा तब से
लदे भरे सामान
थकी सी वो मुस्कान
सपने संग खुशियाँ
और खाली सा मकान
ये जो मिलन हुआ मन रे !
मन बीच बसा तब से
बंद पड़े वो द्वार
साथी भी नहीं कोई पास
नयी सी एक दुनियां
और सुबह सबेरे काम
ये जो मिलन हुआ मन रे !
मन बीच बसा तब से
झुकी रही नजरें
गंभीर किये जो सवाल
नए से लोगों में
दोस्तों का पैगाम
ये जो मिलन हुआ मन रे !
मन बीच बसा तब से
दो पल की खुशियाँ
घंटो भर ताकना
नाराज कभी होना
फिर चुप के हंस लेना
ये जो मिलन हुआ मन रे !
मन बीच बसा तब से
मन बीच पड़े होना
चुपचाप चले जाना
सांसो का मिलना
फिर बाँहों में भरना
ये जो मिलन हुआ मन रे !
मन बीच बसा तब से
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