सहृदय ही रहा

 भावनाएँ कभी तोली जाती नहीं 

विरह गीत तो  गुनगुनाया नहीं 

मन ने मन की सुनी मन से ही कहा 

मन ने जो भी कहा वो तो सच ही लगा  


भेद करना कभी रास आया नहीं 

पीड़ा को कभी गुनगुनाया नहीं 

मन ने सोचा जिसे उससे ही कहा 

उसने जो भी कहा वो तो अपना लगा 


तोडना तो कभी रास आया नहीं 

मन के विश्वास को डगमगाया नहीं  

मन ने  जोड़ा जिसे मन मैं ही रहा 

उसने माना न माना वो सहृदय ही रहा 

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