जिम्मेदार !
एक टक देखा जिसको अपनाया बार हज़ार
भीड़ भरे बाजारों में सदा लगा था पास
वो कहता है मुझसे वो लड़ता है मुझसे
बरसो बाद मिलन के तुम ही हो जिम्मेदार।।
त्याग समर्पण देखा उसका खुद से कहा हर बार
चुप ही रहे थे हम वो था नजरों का अभिमान
वो पूछता है मुझसे वो लड़ता है मुझसे
पढ़ नहीं पाए नज़र क्यों तुम ही हो जिम्मेदार।।
घिरा रहा था सबसे सम्बन्ध रखे थे लाम
लोगो की सुनी सुनाई था उनको ये आभास
वो कहता है मुझसे वो लड़ता है मुझसे
खुश रह नहीं पाए तुम बिन तुम ही हो जिम्मेदार।।
स्पर्श रहा गीतों का कविता की आवाज़
बोल न पाए हम कुछ मौन रहा सम्मान
वो कहता है मुझसे वो लड़ता है मुझसे
कह नहीं पाए क्यों तुम ही हो जिम्मेदार।।
सच कहते है वो भी कहनी थी सारी बात
हारना ही था तो खोते कहकर साथ
सच कहता है मुझसे सच लड़ता है मुझसे
कह नहीं पाए क्यों हम ही हैं जिम्मेदार।।
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