जीवन का सार
जिसको माना था बरसों से जाना है कुछ दिन से
यूँ ही नहीं था समुन्दर गहराई उसकी जीवन से
एक रूप दिखा जो उसका गर्व हुआ है आज
कि लाखों में जो चुना था वोही इस जीवन का सार
जिसको एक टक देखा बरसों पूजा है पहली बार
यूँ ही नहीं वो शिवालय आराधना सी जीवन से
एक रूप सजोया हमनें और लिख दी बात हज़ार
कि माँगा था जिसको वोही इस जीवन का सार
जिसको देखा था बरसों से समझा है अबकी बार
यूँ ही नहीं वो हिमालय प्रताप रहा जीवन से
एक रूप बसाया हमनें आभास हुआ है आज
कि अपनों सा जो चुना था वोही इस जीवन का सार
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