कभी तु आ
मैंने तोड़े हैं जगत के लाख बंधन थे कहीं
छेड़ देता हूँ कभी कोई बात नादानी भरी
साथ में रहता है तु ही यूँ सदा ख़ामोश ही
अब भी दिखती हैं तेरे शब्दों में सीमाएं बची
यूँ तो हम दो छोर हैं जो राह तकते हैं सदा
जनता हूँ मिल न पाए पर रहे मन में सदा
आ कभी तु तोड़ कर अब जो बची सीमा तेरी
भूल कर आ वो सभी जो हैं बची शंका तेरी
छुपते छुपते तेरे लोगों से कि या बतलाके आ
सब फ़साने छोड़कर मन गीत कोई गा के आ
देखना हर जोर हारा है समय के सामने
तेरा अपना है कोई बस एक निश्चय करके आ
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