जो थोड़ा है
आस जगी है मन में कोई नेपथ्य कहीं रोशन सा हुआ
वीरान हुए जो मंच कभी थे एक तेरे चले जाने से
क्या खोया क्या पाया हमने निष्कर्ष नहीं इस रिश्ते का
जो थोड़ा सा पास बचा है सार वही इस जीवन का।।
ढूंढ रही थीं आंखें राहें छटती अर्चि गोधूलि है
रात रही जो बरसो घेरे चाँद तेरे चले जाने से
कह डाला क्या भूला हमने निष्कर्ष नहीं इन बातों का
आज जो थोड़ा कह देते है सार वही इस जीवन का।।
शंकाये कुछ जिन्दा हैं पर भ्रम के घेरे टूटे हैं
खुद लिखते थे खुद पढते थे दर्द तुम्हारे जाने से
आँख चुराता क्यों रूठा था निष्कर्ष नहीं उन शामों का
आज वो थोड़ा सुन लेते हैं सार वही इस जीवन का।
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