कुछ इजारा साथ की
राह के दो छोर यूँ तो तय हैं मिल सकते नहीं
दूरियां कम कर रहे हैं हम जो बरसों दूर थे
यूँ किनारों को चली हैं कश्तियाँ मझधार की
हमने थामी है पतंग जो डोर है किसी और की ।।
प्राधान्य हों जब काम हम सब बता सकते नहीं
बात हम अब कर रहे हैं जो बरस चुप ही रहे
यूँ तो मंदिर में सजी है श्याम संग राधा सदा
हमने मन में है रखी मूरत रही किसी और की।।
लाम पर हों मन खड़े यूँ मिल गले सकते नहीं
अहसास सा कुछ कर रहे हैं जो बरस छुए नहीं
यूँ सदा से मुक्त हैं वो हर हलफ़ मेरे लिए
हमने एकतरफा ली हैं कुछ इजारा साथ की।।
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