तुझमे- मुझमे
बहती नदिया कहानी वो तुझमे भी है
चहचहाती गोरैया वो तुझमे भी है
भीगती सी रही जो बरखा में कभी
वो अल्हड जवानी तुझमे भी है
रास राधा कन्हैया वो तुझमे भी है
नटखट बछेरु सा तुझमे भी है
दौड़ती सी रही एक अल्हड प्रीति
वो मीरा दीवानी तुझमे भी है
बोलती गुनगुनाती तु मुझमे भी है
घोलती प्रेमरस वो तु मुझमे भी है
प्रेरणा की कोई चांदनी रात सी
मुझको जगाती वो तु मुझमे भी है
प्रेम स्नेह आलिंगन तु मुझमे भी है
मन की हर एक तमन्ना तु मुझमे भी है
उस समर्पण की एक बानगी सी कोई
तेरी सांसो की खुशबु मुझमे भी है ।
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