चंद दिनों में

 चंद दिनों में पाया जीवन कुछ थोड़ा सा बाकी है 

जाने कुछ तो बात वो होगी तु गुमशुम हो जाता है 

खोना पाना बाद लिखूंगा घुटना हंसना सब तय है 

बाँट भी लेना साथ वो सारा ये जीवन सांसे क्या कम हैं


चंद दिनों की प्रीत अनुत्तरित जिज्ञासा अभी बाकी है 

जाने कुछ तो लोग भी होंगे जिनकी गुरुता ऊँची  है 

राह अकेली चुनी जो है मंजिल इसकी कोई नहीं है 

इन राहों पर चलकर थोड़ा मर्म समझना क्या कम है 


चंद दिनों का साथ जीया है उसे निभाना बाकि है 

जाने कुछ तो मन ने सुना है जिसे रोक सा देता है 

कहने को एक उम्र पड़ी है सुनना तुझसे और भी है 

इन रातों में जगकर थोड़ा बुनियाद बनाना क्या कम है 

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