तुझसे जुड़कर
खेतों की मेढ़ों पर फूलों की एक क्यारी सी
घर के नारंगी पेड़ों पर कोई छोटी चिड़िया सी
बादल को छूकर देखा है पहाड़ों की उचीं चोटी से
मैंने रंग हज़ारों देखे हैं गोद में बैठे धरती के
बरसाती मौसम में बार बार के इंद्रधनुष सी
दूर उफनती किसी नदी के सुर समवेतों की
फसल लहरते देखा है बासन्ती हवाओं में
मैंने संग हज़ारों देखे हैं साथ में चलते 'नंदा' के
सब लौट के आया है बचपन की मीठी यादों सी
जौ गेहूं की अंकुर हो या धान उगाती चावल सी
आशाओं को छुपे देखा है पीढ़ियों के 'क्वाठारों' में
मैंने तुझसे जुड़कर पाए सपने अपने बचपन के।
Comments
Post a Comment