छुवन
वो निशानियां एक काठ पर
मेरा रोम रोम खिल उठा
जो सुहागिने भी हों ख़फ़ा
मेरा देह देह बस गया
तेरे गात की छुवन लगी
मेरा अंग अंग रंग गया
वो आह साँस दे गयी
मेरा तन बदन महक गया
जो नगीनों सी फ़ांस हों
मेरा मन वहीं अकड़ गया
तेरे बाल की छुवन लगी
मेरा अंग अंग जल गया
वो जो मोह था दबा तेरा
मेरा अंतर्मन भिगो गया
जो फूल सी कपोल हों
मेरा मन वही खिला गया
तेरे लब की एक छुवन लगी
मेरा नीर नीड बह गया
वो जो है रहा समर्पण तेरा
मेरा दीन हीन अर्पण रहा
जो एक निस्त - ऐ- नूर है
मेरा मन वही लगा रहा
तेरे स्पर्श का आभास ही
मेरा रोम रोम बस गया
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