स्नेह समर्पित
लाल गुलाब एक माँ ने रोपा एक तेरी पोशाक लगी
यूँ कुछ करके मैंने तुझसे फिर रिश्ता सा बान्ध लिया
हो उगंली पकड़े तु सहमी या नज़रें फेर ले यूँ सबसे
आराध्य रहे जो देव तुम्हारे हक़ मैंने भी जता लिया
लाल कमलदल होंठों पर गहरी वो मुस्कान दिखी
तु शादी के जोड़े मे भी अपनी सी कोई ख़ास लगी
‘सिंह’ रहा है राजा कानन मोर पंख कान्हा का है
‘नथुली’ पहन जो सज़ा रहा वो सौन्दर्य पहाडी है
बरसों बाद किसी ने फिर से उस जीवन को जोड़ा है
कहीं नही थे आसपास पर स्नेह समर्पित सौंपा है
कविता को कोई छन्द मिला है बाहर रात सुहानी है
तु भी है और मै भी हूँ इस जीवन की यही कहानी है ।
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