जानता सीमाएं हूँ
बनना पेड़ कभी झुक जाना पर टूट न जाना तु
बतला जाना बोझ लगूँ मैं जानता सीमाएं हूँ
तटिनी को राह बदलते हिमगिरि गलते देखा है
मैंने पक्षी के चूजों को नीड से उड़ते देखा है
सजना रूपवती से रूपों में मूरत न बनना तु
बतला देना खोट लगे जब जानता सीमाएं हूँ
अक्षत के चावल फूलों को कूड़े में पड़ते देखा है
मैंने बीज धरा पर पड़े हुए ही खुद सा मरते देखा है
सुनना सम्मानों की सीमा तक तब रोक भी लेना तु
बतला देना चोट लगे जब मैं जानता सीमाएं हूँ
पेड़ो से साखों को कटते तुझको पहले भी जाते देखा है
मैंने उत्श्रृंखल जलधारा को जलधि में मरते देखा है।।
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