तुझमे मुझमे है बसा
वो जो है रहा हर बात में
वो जो बांटता समय भी है
सुनता है हर सीला मगर
कहता कभी कुछ भी नहीं
वोही सादगी पहचान है
वो सरल स्वभाव मान है
वो लिखने नहीं देता मगर
पढ़ने की चाह है रही
वो जो है रहा हर चाह में
वो जो बाँटता हर राज भी
वो जो दिखने नहीं देता मगर
रखता है हर सम्मान भी
वो जो मायने बदल गया
वो जो जीवन को राह दे गया
वो जो रहता है दूरी में मगर
सदा रहा मन के करीब भी ।
वोही आरजू है सांस की
वोही आखिरी नजर रहे
वो जो तुझमे मुझमे है बसा
वो खलुस ही अमर रहे
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