स्पर्श तुम्हारा
बुग्याली घासों पर कोई बर्ह्मकमलदल खिलता है
आशाओं की कोमल कोपल मन को युहीं जगाती हैं
तु कहता जब स्पर्श तुम्हारा अपनों सा ही लगता है
तु मुझमे में तुझमें समाता कलरव पीड़ का झरना है
वातायन पर हल्के झोंके रोम रोम उकसाते हैं
अमियाँ की जो छाँव तले मन हर्षित सा होता है
मैं कहता खुशबू में तेरे अपनापन सा लगता है
तु मुझमें मैं तुझमें खोता गहराता सा कानन है
धुन एक मड़राता भावरा राग प्रेम का गाता है
फूलों सा जीवन जीने को मन थोड़ा ललचाता है
हम कहते जब डर का आलम मन को घेरे रहता है
तु मुझको मैं तुझको तकता खोया सा एक चातक है
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