आधे अधूरे
सजे तो कान्हा का मोरे मुकुट बन जाय
आधे चाँद का भी अपना एक रुतवा है
समां जाय सब स्नेह धरती में तो क्या
सरस्वती का भी अपना एक सम्मान है
दूर हो राधा तो कान्हा की पहचान बन जाय
आधे रिश्तों का अपना एक सम्मान है
वाष्पित हो झील जीव बिहीन हो तो क्या
खारे पानी का अपना एक स्वाद होता है
पक्के हुए हर फल की मांग ज्यादा होती है
आधझड़े फलों की भी अपनी एक यात्रा होती है
मंदिर के किसी कोने में फूल मुरझा जाय तो क्या
उन बीजों का भी अपना एक प्रभाव होता है
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