अजब ये रिश्ता
वो खुद को दोषी ठहराकर मुझे मिजरिम बनाता है
वो खुद तो हार जाता है मुझे सजाता संवारता है
वो मुझपर रहम खाकर ही मुझे जीता सा जाता है
वो हर रिश्ते को आजमाकर मुझे अपना बनाता है
वो खुद भूखा सा रहता है मुझे सबकुछ बनाता है
वो खुद को खो सा जाता है मुझे सबकुछ दिलाता है
वो हर दिन जगता रहता है मेरी रातें सजाता है
वो खुद दुपहर नहीं खाता मुझे रातों में भी खिलता है
वो खुद परेशान रहता है और मेरी चिंता में रहता है
अजब ये रिश्ता है मेरा वो दयाकर भी निभाता है
खुद पर लाखों बंधन है मुझे उड़ना सिखाता है
वो कहता है सब भूल जाओ फिर रुकने को कहता है
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