प्रेम प्रतीक्षा करवाता है
शब्द सरल हैं कशिश अनोखी
जीवन है ये नश्वर भी
पिपासा होती तो जकड लेती
ये प्रेम प्रतीक्षा करवाता है
जुग जुग का आलेख पढ़ा है
खोना रोना सब सच है
संगम होता तो बह जाता
ये प्रेम प्रतीक्षा करवाता है
बुनते बुनते स्वप्न स्वाहा हैं
आग रही है तपन भी
जंगल होता तो जल जाता
ये प्रेम प्रतीक्षा करवाता है
जर्जर होती दीवारों पर
आस्था के मंदिर सजे हुए हैं
प्रसाद होता तो मिल जाता
ये प्रेम प्रतीक्षा करवाता है
अपने में अपना सा कब है
कब बंधन में बंधा हैं ये
जिद जो होती तो पा लेता
ये प्रेम प्रतीक्षा करवाता है
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