सच होंगे सपने सारे
चेरी के पत्तो की मिठास चखी है
चिड़िया के नीड़ों से आवाज़ सुनी है
वो खुशबू दिखती है और रंग सुनाई देते हैं
झरने को रंगता पाया है माटी के से रंगो में
पत्थर को बढ़ने के आशा रखी है
स्वरसंवेद लगे हैं झींगुर की आवाजों में
बादल को बहते हैं और पानी थमता देखा है
मैंने इंद्रधनुष देखा है भरी हुई दोपहरिया में
मौन को सुनने की आदत रखी है
अकेले में खुद अक्सर आवाज़ लगायी है
तुझको वापस आते और भरोसा करते देखा है
सपने बुनना सीखा था माँ धरती की गोदी में ।
सच होंगे वो सपने सारे सच बोलेगा चिल्लाकर
सहारा बन चलता रहा अदृश्य कोई साथ में
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