भाग्यरेखा

 कुछ दूर चल के आया हूँ 

कुछ दूर ही है चलना 

मेरा सफर जहां में 

कब दूर तक गया है 

हाथों की खाक छानी 

मन से करम किये थे 

सर पर खीचीं है रेखा 

मैं बुनियाद से हिला हूँ 


कुछ सोच लेके आया था 

कुछ सोचकर बढ़ा था 

मेरे कदम जहां में 

कब साथ पा गए हैँ

जीवन है मृत्युशैय्या 

कर्तव्य कर लड़ा था 

रेत पर रची है रेखा 

मैं समुन्दर से है मिटा हूँ 


कुछ ऊचे उठे गगन में 

कुछ पाताल मै धंसा था 

मेरी  उन्नन्ति जीवन मै 

कब समान्तर ही रही है 

संघर्ष है सब हारने का 

दौड़ जीत की नहीं है 

पहाड़ो की भाग्यरेखा 

मैं घाटी में ही धंसा हूँ 

Comments

Popular posts from this blog

कहाँ अपना मेल प्रिये

दगडू नी रेन्दु सदानी

कल्पना की वास्तविकता