एक तेरे भरोषे
एक तेरे भरोषे पर कई बुनियाद रखता हूँ
कुछ कागज़ के टुकड़ों पर कहानी एक रचता हूँ
ये आशा है कभी होगी कहानी पूरी जीवन की
न हो फिर भी तेरा ही जिक्र होगा हर मकामों पर
एक तेरे भरोषे पर कई उम्मीद रखता हूँ
कुछ सपने जीता हूँ कुछ सपने बुनता हूँ
ये आशा है कभी होगी मनों की बात पूरी भी
न हो फिर भी तेरा ही जिक्र होगा हर बात पर
एक तेरे भरोषे पर कई रातें बचाता हूँ
कुछ रातों को जगता हूँ कुछ में गुनगुनाता हूँ
ये आशा है कभी होंगी संग एक चांदिनी भी
न हो फिर भी तेरा ही जिक्र होगा हर अँधेरे में
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