जग की प्रीत
आएंगे जंगल के राजा कहते हैं वो पीर फ़क़ीर
फिर होगा क्रुन्दन मनों का जग की ऐसी रही प्रीत
फिर पहरे होंगे निजाम पर शक की एक सीमा भी
घुल मिल मिट्टी में शामिल मैं बीज आस के बोऊँगा
अपनों की बाट देखते आस सजाये हैं दो लोचन
फिर होगा दूरियों में इजाफा जग की ऐसी रही प्रीत
फिर मन भी हिचकोले लेगा क़दमों की एक सीमा भी
घुल मिल तेरी प्रीत मै शामिल मैं बीज ख़ुशी के बोऊँगा
'आएंगे मनमीत हमारे कहते हैं 'मंजीत हमारे'
फिर होगा एक द्वन्द मनों का जग की ऐसी रही प्रीत
फिर वो अंगुली पकड़ मुड़ेगी नजरों की एक सीमा भी
घुल मिल तेरे आँगन में शामिल मैं बीज प्रेम के बोऊँगा
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