सौँप दिया
कब सीमाएं बंधती हैं
वो परवाह हो गयी ज्यादा
जा बैठा तेरे दायरे
वो अपनापन है ज्यादा
कब रिश्तों का भेद रहा अब
कब दूर रहा तू मन से
तुझमे खुद का साथ समर्पण
कब चाहा तुझसे ज्यादा
कब सफर हुए खामोश हैं
वो साथ हो गया ज्यादा
समा लिया अपने में
वो चाहत हैं अब ज्यादा
कब तू आधा था जीवन में
कब पूर्ण मिला है मन को
तुझमे खुद को सौँप दिया है
कब माँगा तुझसे ज्यादा
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