फूल खिले हैं
मैं घर था एक टूटा सा
खण्डहर एक बच्ची महराबें
धूल ढकी मन की दीवारें
आशा बनकर लाश पड़ी थी
अँधेरा कुछ छँटा हुआ है
मन कोलाहल थमा हुआ है
म्यानों में चुप हैं तलवारें
संदेहों की लाश जली है
प्रीत वही चुपके खिलती है
न जाने कब घेर गयी है
प्रेम रंग से सजी मीनारें
क्यारी में कोई फूल खिले हैं
सम्बन्ध वहीं सब तर जाते हैं
मन में जो आराध्य रहे हैं
गिरी अभी हैं बरसा की बूंदे
अभिलेखों पर शब्द दिखे हैं
प्राण वहीं सब बस जाते हैं
सांसे जिनसे थमी हुई हैं
संभल जरा मन चल तू होले
अब लाम पर तार नहीं हैं
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