सौ गुजरे जो
दिन बसंत छोटे हौं फिर भी
खुशियों का अम्बार रहा
मेरे मन में तू खोया और
तेरे मन में प्रीत जगा
सदियों सदियों जिसको ढूंढा
तलाश उसे भी एक रही
आलिंगन मन उसका है और
सांसो में कोई साँस रही
पुस्तक पुस्तक जिसको बांचा
समझ उसे भी एक रही
आध समर्पण मन देखा और
चाहत उनके पास रही
मोड़ मोड़ पर जिसको ढूंढा
बांट ताकता वो भी रहा
दर्पण में खुद को देखा और
उसकी सी तस्वीर लगी
रात रात जगते थे जिसको
उसकी आंखें डबडब थी
कहा नहीं एक शब्द कहीं और
मन ने मन से बात कही
यूँ दिन करके सौ गुजरे जो
वक्त थमा सा पास रहा
हम उसमे खोये हैं और
वो सपनों से भी डरता रहा
आ आलिंगन फिर से कर लें
जाने कब तूफान उठें
हम दुनियां से रुखसत हों और
तेरा भी विश्वास रहे
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