लौटने की आदत

 तुम्हे खुद से न हो शिकवा मुझे ताउम्र गर्दिश है 

मुझे पनघट से प्यासा लौटने की एक आदत है 

मैं जिन रास्तों चला सदियों वही खुद बंद होते हैं 

मुझे ख़ाली हथेली लौट आना है सफर सबसे 


हजारों पेड़ बोये हैं मैं रेगिस्तां बढ़ा आया 

मुझे हर नीर से सूखा लौटने की एक आदत है 

मैं जिन घाटों लिए थाली  वोही बाढ़ों से टूटे है 

मुझे ख़ाली दुवाओं लौट आना देवस्थानों से 


किताबों से घिरा हरदम वो पाती प्रेम न समझा 

मुझे सबकी सभाओं से अगम लौटने की एक आदत है 

जिन्हे मैं कह गया सबकुछ वहीं खामोश बैठे हैं 

मुझे चुपचाप गिरना है भरे ख़ाली से मंचो से 

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