मंजिल की पराकाष्ठा
सिमटी सी मेरी दुनिया
जरा से दायरे मन के
दिन-ओ-दुपहर वो शाम -ओ- रात
तम्मन्ना एक तुम तक है
विचारों का अनोखापन
समझ की एक नादानी
भरे मंचो का मतलब तु
वो खाली सा मकां तुमसे
अनुमोचन के हर सपने
फकीरी की तीमारदारी
सब पाने का मतलब तु
वो खाली हाथ हैं तुमसे
अनुबन्द्धों के संबंधों
अकेलेपन की तन्हाई
समय के सार में है तु
वो खालीपन भी है तुमसे
मंजिल की पराकाष्ठा
गिरना जीवन की खाई
सांसों का है मतलब तु
वो दो गज़ का कफ़न तुमसे
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