व्यस्तता किसकी नहीं

 कसूर है सब भावना का 

व्यस्तता किसकी नहीं 

तलाश कोई रहगुजर है 

कोई जिद्द में दूरियों की  

यों कहीं कब दीप मन के 

ओझल कहीं होते नहीं 

हो लहर का पास आना 

या समंदर एक नदी 


अर्थ है सब बात का यूँ 

कुछ कही कुछ चुप रही 

साथ कोई हमसफ़र है 

कोई जिद्द सब छोड़ने की 

यों कहीं कब साथ मन के 

दूरियों में रहते नहीं 

दो कदम वो खींच लेना 

या  ख़ामोशी ओढ़ ली 


त्रिस्कार है हर बात पर 

यूँ साफ़ दिखती बेरुखी 

कब समय माँगा है तुमसे 

एक इच्छा रही है साथ की 

हर बार अजमाया गया हूँ 

स्वार्थ रिश्ता  कुछ नहीं 

मन में जो हो कह भी देना 

या समर्पण फिर सही 


गिर के सम्भला हूँ नज़र में 

अब गिरा जाता नहीं 

ठूँठ ही फिर मन सही 

अब पत्थर बना जाता नहीं 

इस जीवन पर हक़ हे तेरा 

बर्बाद हो या आबाद सही 

आजमा लो जितना हो सके 

या आवाज़ देना फिर सही 

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