दीप
जो देखा नहीं बरसों तक
वो चेहरा मन की मूरत है
मैं तल अँधेरा दीपक का
वो प्रकाश है ज्योति का
बरसों तड़फ रहा पतंगा
जल जाना है दीपक में
या थाल लिए आरती सजा दूँ
करके अश्रु समर्पण मैं
अंधेरों से लड़ आया हूँ
राह दिखा वो राह चलाता
या प्रकाश परावर्तित होकर
जगमग मेरी दुनिया करता
मिलन दीप की बाती का
पाणिग्रह के सिलवट्टे में
या समर्पित मन की आशाओं के
दीप बहे गंगा तट जो
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