मेरा ही है
वो हँसता है हँसाता है
कभी मुझको मनाता है
वो चाहत साथ की रखकर
अक्सर रूठ जाता है
वो गिनता है गिनाता है
अपनों में परायों में
कभी मन बीच रखता है
कभी पूरा भुलाता है
वो रोता है रुलाता है
कभी सब बाँट जाता है
मिलाकर साँस सांसों से
कभी सांसें छीन जाता है
वो मिलता है बुलाता है
कभी दूर भाग जाता है
बाँहों भर कभी मुझको
छिटककर हाथ जाता है
वो अपना मुझको मानता है
कभी पराया बना लेता है
कल्पना के समुन्दर में
तैराता है डुबोता है
वो मेरा है मेरा ही है
बताता नहीं जताता है
लाखों दायित्व हैं उसके
मुझे बस मन में रखता है
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