मन से तेरे लिए
तस्वीरों का शौक नहीं
स्मृतियाँ सहेज कर रखता हूँ
आलिंगन दो चार हुए हों
खुशबू ओढ़े रहता हूँ
रिश्तो के बंधन नहीं है
मन मंदिर में रखता हूँ
मिलने की जब आस कम ही हो
दिन दिन जीता रहता हूँ
शर्तों की दिवार नहीं है
सीमाओं में रहता हूँ
जिस पर यूँ तो बस नहीं चलता
उस पर मिटता रहता हूँ
जिसकी कोई मांग नहीं है
उसको सोचा करता हूँ
अखिल किया है सबका लेकिन
मन से उसको करता हूँ
कल जो होना है हो जाये
आज वो मेरे साथ है
पाना खोना जीवन ही है
गरल प्रेम पी अनश्वर हूँ
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