बेरुखी हरदम
तुझे किस बात का डर है
प्रणय ये प्रेम था कब से
जो एक जिद में मैं बैठा हूँ
ये हर-ओ-जीत मेरी है
तुझे कब बंदिशें बाँधी
कहाँ कब रोक पाया है
ये निर्णय भी मेरा ही था
ये सजा- ए-मौत मेरी है
नहीं करना जो कुछ बातें
वो तेरा ही तो निर्णय है
मेरी हर बात है तुझसे
मेरे ख्वाबों की तु मंजिल है
रखना बेरुखी हरदम
ये तुझको ही मुबारक है
मेरी हर साँस की खुशियां
तेरे द्वारे ठहरती हैं
अधूरे इस सफर पर हम
मेरी सम्पूर्णता तुझसे
तु लाखों की है एक दुनिया
मेरी दुनियां तो तुझतक है
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