प्रेम रिश्ता नहीं
परम्पराओं में अहसास
नहीं मिलता
इसलिए परम्पराओं में
प्रेम नहीं मिलता
प्रेम कब परंपरा रहा है जग की
ये विशुद्ध समर्पण है
जो तुमने दिखाया है कभी
समाज के ताने बाने में
प्रेम रिश्ता नहीं
इसलिए सभी की स्वीकार्यता में
प्रेम नहीं दिखता
ये तृप्ति अर्पण है
जो तुमने दिखाया है कभी
तेरा समर्पण याद रहा है
तेरा अर्पण याद रहा है
घर के बाहर खिलती तुलसी
पश्चिम सूरज लाल डूबा है
फिर भी प्रेम कहाँ छुपा है
ये स्वीकार्य रहा है मुझको
तेरी कमी रही जीवन को
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