मर्मपथ छूटेगा नहीं
ना जाने ये कुछ सजाएँ
क्यों भुगतता अनजान हूँ
कह दूँ तो अति हो जाती
चुप हूँ पर रहा जाता नहीं
ना जाने नैपथ्य मै कुछ
क्या घटता रहा अनजान हूँ
मोड़ उसपर चल पड़ा है
सहमा हूँ पर रुका जाता नहीं
ना जाने ये डोर कैसी
क्यों बांधती अनजान हूँ
मंजिलें सब अदृश्य सी हैं
अँधेरे फिर भी डराते नहीं
तू सफर की रौशनी
वो चाँद सूरज दीप सी
अनजान मेरी भाग्य रेखा
ये मर्मपथ छूटेगा नहीं
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