समां गयी
कोमल कमलदल सकुचाई सी
पीर हमारी मिली मुझे
समां गयी उर अधरों से
सार समर्पण सीखा गए
पीर हमारी मिली मुझे
समां गयी उर अधरों से
सार समर्पण सीखा गए
उंगुली हाथ हथेली छुई
पथि वो आटा मेरे लिए
फूल मुलायम पंखुड़ियों सी
हाथ वो रेखा बना गए
कागज़ की कोई नाव तैरती
डूब पहाड़ समुन्दर हम
ज्वार थमा निशान से छूटे
रचते रहे हैं मेहँदी हम
समय सदा से काम ही रहा है
चितचोर रहा मन मीत मेरा
दो पल की सब खुशियां बाँटी
और गीत लिखना सीखा गए
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