शाम से रात
जगा हूँ जिस रात में अब
वो शाम सो गयी है कब की
अहसासों की परवाह कहाँ
कीमत है हर काम की .....
होती हैं कुछ शाम अधजगी
कुछ रात सुनीन्द सी सोती हैं
लिखती हैं सन्देश कोई
कोई चुपचाप मिटाती जाती हैं
घर का कोई सूना कोना
देख उदास समझाता है
तेरा अपना द्वन्द खुद से
तेरी अपनी ही रुसवाई है
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