गंगा प्रेम की
मैं पतित प्रेम की गंगा को
मन में बहाता जाऊँगा
हिमशिखरों के आगे जाकर
दुनियां नई बसाऊँगा
टकराती आवाज गूँजती
घाटी बाँध के आवूँगा
आलिंगन से आगे बढकर
जीवन नाम तेरे कर जाऊँगा
मैं सडकों के मोडों पर
तेरे नाम की पौध लगाऊँगा
मीलों के पत्थर पर लिखकर
मंजिल तुझे बनाऊँगा
खुशियों तेरा नाम बाँटकर
हर मंदिर प्रसाद चढाऊँगा
परिक्रमा के मार्गों पर
तेरी धूली अंग लगाऊँगा
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