मिट्टी सा
मैं मिट्टी सा बिछ जाऊँगा तु
फूल क्याँरियां खिल जाना
मैं पात अरूई फैलूँगा
बूँदे मोती तुम बन जाना
मैं सागर सा बिन सीमा के
तु घर की चौखट बन जाना
बाँह फैलाकर जब मैं पुकारूँ
तु वही समर्पण कर जाना
रातों के सुनसान पहर का
मौन गीत बन गुनगुना जाना
मेरी खिसकती लगी जमीं पर
तु पक्की नीव लगा जाना
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