तुझतक

शाम सुहानी रातें लम्बी
अक्सर पूछा करती हैं
सुबह सबेरे चढी दुपहरी 
हाल मनों का कहती हैं
सूना आँगन भरा हुआ है
मन अन्दर तु बसा हुआ है
शब्द सभी पहचाने तेरे 
कविता गीत रचे सब तेरे
घुल मिल गये वो शब्द हैं तेरे
आयाम नये आदर्श हैं तेरे
एक डगर बस जाती तुझतक
सफर सुहाना मंजिल तुझतक
तु आदि और अन्त है तुझतक
आदि शक्ति! उम्मीदें तुझतक

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